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जाने कटनी जिले के बारे में (Know about - Katni)

कटनी, जिसे मुड़वारा के रूप में भी जाना जाता है, मध्य प्रदेश, भारत में कटनी नदी के तट पर स्थित एक शहर है। कटनी जिले का प्रशासनिक मुख्यालय है। ...

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Sunday 28 July 2024

जाने धर्म नगरी मुड़वारा (कटनी) शहर, जिला कटनी (मध्यप्रदेश) के प्राचीन मंदिरों के बारे में कुछ पुराना इतिहास व जानकारी

 *आज आप जाने धर्म नगरी मुड़वारा (कटनी) शहर, जिला कटनी (मध्यप्रदेश) के प्राचीन मंदिरों के बारे में कुछ पुराना इतिहास व जानकारी....*


*श्री गणेश मंदिर झंडाबाजार -

* प्राप्त जानकारी अनुसार झंडाबाजार स्थित श्री गणेश मंदिर *विक्रम संवत 1921 में (सन् 1864)* मालगुजार *ठा. लुत्तू सिंह, ठा. हनुमान सिंह चौहान* के पूर्वजों ने बनवाया था। वि.सं. 2024 (सन् 1967) में ठा. हनुमान सिंह (लुत्तु सिंह) के पुत्र *ठा. वेनी सिंह* ने मंदिर का जीर्णोध्दार कराया था। 

*माँ जालपा देवी मंदिर जालपा वार्ड -

* नगर का प्रमुख श्रृद्धा केन्द्र मां जालपा देवी मंदिर की स्थापना *सन् 1766* के आसपास बताई जाती है, लगभग 250 वर्ष पुराने इस श्रृद्धा केन्द्र की खोज एवं स्थापना *श्री बिहारी लाल* ने की थी *श्री जालपा देवी मंदिर* के पंडा *श्री लालजी* ने बताया की उनके पूर्वज *श्री बिहारी लाल* आत्मज *बाला प्रसाद* बचपन से ही बड़े धार्मिक स्वाभाव के थे। उन्हें स्वप्न में अक्सर एक घना जंगल व बांस के बीडों के मध्य देवी मूर्ति दिखाई देती थी।  बार-बार यही स्वप्न दिखाई देता था। तो वे रीवा से 12 किलो मीटर दूर स्थित अपने गांव लऊआ को छोड़ कर स्वप्न में दिखे स्थान की खोज में चल पड़े महिनों भटकते वे कटनी पहुंचे। उन्हें घने जंगल के बीच स्वप्न में दिखने वाला स्थान मिल गया बांस का बीड़ा और जंगल साफ करने पर उन्हें पर्वत खण्ड में खुदी *मां जालपा (वन की देवी)* की मूर्ति मिल गई वे खुशी से झूम उठे। उन्होंने मां जालपा की मूर्ति की कांश की छाया बनाकर नियमित पूजा शुरू कर दी सन् 1800 के आसपास यहां बस्ती बसी तो लोगों ने कांस के स्थान पर ईंट से छोटी मंढ़िया बनवा दी अब श्रृद्धालु जन मनोकामना पूरी होने पर नियमित आने लगे और मंदिर में श्रृद्धा बढ़ने लगी और मंदिर की ख्याति चंहु ओर फैलने लगी *सन् 1900* के आसपास मंदिर चूना, ईंट, चीप से भव्य रूप में बनाया गया । सन् *1968* में मंदिर का *जीर्णोध्दार* कर और भव्य रूप प्रदान किया गया, तथा मां जालपा, मां कालका, एवं मां शारदा की जयपुर से लाई संगमरमर की मूर्ति स्थापित की गई। *पूज्य कृष्णानंद स्वामी* के सानिध्य में भव्य *शतचंडी यज्ञ* का आयोजन किया गया। सन् *2007* में पुनः मंदिर को भव्यता मिली एवं मंदिर परिसर में *चौसठ योगनी* की स्थापना का कार्य प्रारंभ किया गया *सन् 2011* में विधि विधान से *पट्टाभिरामाचार्य महाराज* द्वारा चौसठ योगनी मूर्तियों की स्थापना कराइ गई। मूर्तिया चित्रकूट में बनी थी मां जालपा मंदिर हजारों नरनारियों का आस्था का प्रमुख केन्द्र है।


*विशेष -* वर्तमान मूर्तियों के बीच 250 वर्ष पुरानी मां जालपा की मूर्ति *गर्भगृह* में ही है, जिसकी आज भी विधिवत नियमित पूजा सर्वप्रथम की जाती है। प्रथम पंडा *श्री बिहारी लाल जी* की *समाधि* एवं उनके द्वारा बांधा गया कुंआ मंदिर के पास ही है।


*माता मरही मंदिर -

* वर्तमान पंडा *बद्री प्रसाद बर्मन* के अनुसार उनके परदादा को माता ने स्वप्न दिया था कि कटनी नदी किनारे नीम के पेड़ के नीचे मैं हूँ, जहाँ से निकाल कर मुझे स्पापित कराओं। बताये गये स्थान पर तीन दिन तक खुदाई चली तब गहराई में माता की मूर्ति प्रगट हुई। मूर्ति की विधिवत पूजन उपरांत प्राण प्रतिष्ठा एवं स्थापना की गई। लगभग 200 वर्ष पुराना माता मरही का यह मंदिर लोगों की आस्था का केन्द्र है। यहाँ आकर श्रृद्धालु पूजा अर्चना कर मनचाही मुराद पाते है, दोनों नवरात्र में 51 अखण्ड दीप खुली हवा में भी जलते रहते हैं, जो रहस्य बना हुआ है।


*शीतला माता मंदिर नई बस्ती -

* नई बस्ती में पशु चिकित्सालय मार्ग पर *मां शीतला* का प्राचीन मंदिर है। मां शीतला का यह रूप मां दुर्गा के आठवें रूप महागौरी का शांत मुद्रा रूप है। मंदिर के पुजारी *पं. सुरेन्द्र पाण्डेय* के अनुसार सन् *1906* में धौलपुर (राजस्थान) निवासी *श्री राम सुखदास अग्रवाल* कटनी में रेल्वे कर्मचारी थे, वे नई बस्ती में रहते थे। उन्हें स्वप्न में मां शीतला ने नीम के पेड़ के नीचे अपनी उपस्थित बताई. सन् *1907* में प्रतिभा प्राप्त हो गई उसे नीम के पेड़ के पास ही स्थापित कर दिया गया । 1932 में वेद पाठी ब्राम्हणों ने विधि विधान से मूर्ति की स्थापना नये बने मंदिर में करा दी नीम का पेड़ यथावत रहा।


*बलखांड़ी राम शारदा मंदिर -

* पूर्वी भट्टा मोहल्ला में बलखंडी *राम पटेल* द्वारा सन् *1910* में स्थापित मां शारदा की मढ़िया क्षेत्र में आस्था का केन्द्र है। मंदिर का संचालन *मां शारदा जलसा कमेटी* करती है। दोनों नवरात्रि में भजन पूजन आरती जवारा जुलूश भंडारा का आयोजन किया जाता है । सन् 1910 से पहले डायर कम्पनी बंगले के पास खेर माई मंदिर एवं कुंआ बलखण्डी राम पटेल ने बनवाया था।


*छोटी खोरमाई झंडा बाजार -

* लगभग 100 वर्ष पूर्व झंडा बाजार क्षेत्र में जंगल था, वंहा एक कहुआ के पेड़ के नीचे छोटी खेर माई का प्रागट्य हुआ, यह *पंडा दिलीप पंथ पटेरिया* ने देखा। 1930 में लोगों ने कहुआ के पेड़ के नीचे ही खेरमाई की स्थापना करा दी तथा खेरमाई कहुआ के तले वाली माता के नाम से जानी जाती थी देनिक पूजा *पंडा दिलीप पंथ* करने लगे। *1959* में कारोबारी *प्रभु भाई कोटक* ने मढ़िया का निर्माण कराया। *1980* में मढ़िया के सामने *मां संतोषी माता* के मंदिर की स्थापना की गई। वर्तमान में *दिलीप पंथ पटेरिया* की तीसरी पीढ़ी पंडा है। 


*आयुध निर्माणी खोरमाई कालीमंदिर-

* द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान एक मई 1942 को आयुध निर्माणी कटनी स्थापित हुई थी एवं *1945* में बंगाली युवा वर्ग द्वारा यहाँ पहली बार दुर्गा पूजा की गई। 1948 में कटनी प्रवासी बंगाली समिति का गठन हुआ। समिति का उद्देश्य काली पूजा, दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती, के अलावा बंगाली नववर्ष (पहला बैसाख) नेताजी सुभाषचंद बोस एवं रवीन्द्र नाथ टैगोर जयन्ती को मनाना था। 8-9-1969 को समिति का विधिवत पंजीयन हो गया 21-1-1976 को आयुध निर्माणी कटनी द्वारा समिति को 80x60 याने 4800 वर्ग फुट का भूखण्ड मंदिर निर्माण हेतु दिया गया। काली मंदिर भवन का निर्माण जनवरी 1978 से शुरू हुआ दिनांक 6-4-1984 को मां काली की प्राण प्रतिष्ठा हुई 1985 में मंदिर में शिवलिंग एवं राधा गोविंद की मूर्ति स्थापित की गई।


*माई घाट का राम जानकी शिव मंदिर -

* शहडोल रोड़ पर माई घाट स्थित *रामजानकी शिवमंदिर* सिमरार (माई) नदी तट पर है। *सन् 1890* में पं. *चन्द्र देव शुक्ल (मंदिर सर्वराहकार)* के पितामह बाबा बजरंग दास ने मंदिर में रामजानकी की प्रतिभा स्थपित की थी। मंदिर में पहले से *नर्मदेश्वर शिवलिंग* स्थापित था। रामजानकी प्रतिमा स्थापित हो जाने से मंदिर का नाम रामजानकी मंदिर चल पड़ा। शिवपुराण में कहा गया है नदी घाट वेलवृक्ष और पीपल के वृक्ष के बीच में विराजे शिवलिंग सभी मनोकामनाओं की पुर्ति करते है। यह स्थिति इस मंदिर में है। 1930 में यहाँ पुत्रेष्टि यज्ञ हुआ था यज्ञ में घी कम पड़ गया तो यज्ञाचार्य पं. कृष्णानंद शास्त्री ने माई घाट स्थित सिमरार नदी का पानी लाने शिष्यों को कहा। शिष्य नदी का पानी लाये व शुद्ध घी की तरह उसका उपयोग हुआ । यज्ञ समाप्ति के बाद यज्ञाचार्य पं. कृष्णानंद शास्त्री ने बाजार से शुद्ध घी मंगवाया और नदी से उधार लिया हुआ घी नदी में वापस डलवा दिया।


*श्री महालक्ष्मी मंदिर -

* (निकट कमानिया गेट) का निर्माण कार्य 1899 में शुरू होकर सन् 1913 में पुरा हुआ । मंदिर में धर्मशाला भी है। मंदिर स्थापना के 100 वर्ष पूर्ण होने पर 23 अगस्त 2013 से 4 दिवसीय समारोह बजाज परिवार द्वारा किया गया, जिसके अंतर्गत शोभा यात्रा भजन पूजन महाआरती एवं महालक्ष्मी जी को 56 भोग प्रसाद चढ़ाया गया। *फतेहपुर शेखावटी (राजस्थान)* से कटनी आकर बसने वाले *श्री हरिदत्त राय बजाज* परिवार द्वारा स्थापित इस मंदिर में आदिशक्ति माँ महालक्ष्मी जी एवं श्री राम, लक्ष्मण, जानकी, हनुमान, शिव पार्वती एवं गणेश जी की प्रतिमायें भी विराजित की है। इस मंदिर की आज भी अरबो रूपये की अचल सम्पति है, यह मंदिर आज भी ट्रस्ट द्वारा ही संचलित किया जा रहा है।


*बिलैया जी का मंदिर -

* सन् *1874* में गहोई समाज के स्वर्गीय *श्री हर बिलैया जी* ने *श्री राम जानकी शिव मंदिर* का निर्माण कराया था। बिलैया परिवार द्वारा मंदिर अच्छी हालत में रखते हुए अच्छा संचालन किया जाता है, एवं पूजा अर्चना व समारोह आदि कराया जाता है। मंदिर को बिलया जी का मंदिर नाम से जाना जाता है। 


*मस्तराम अखाडा का राम जानकी मंदिर -

* खिरहनी ओव्हर ब्रिज के नीचे शासकीस वेंकट वार्ड हाई स्कूल के पास लगभग 150 वर्ष पुराना राम जानकी मंदिर है। मंदिर परिसर में भूमि प्रकट हनुमान जी की एक मूर्ति भी है। इस मंदिर में श्रृद्धालु जन की बड़ी आस्था है *सन् 1860* के आसपास चित्रकूट धाम निवासी *बाबा गोवर्धन दास* ने रामजानकी मंदिर की स्थापना की थी। इस मंदिर क्षेत्र में मंदिर एवं साधू महात्माओं के रूकने हेतु पर्याप्त व्यवस्था भी उन्होंने की थी उस समय यहाँ दूर-दूर तक घना जंगल था बाबा गोवर्धन दास के बाद मंदिर एवं बगीचा आदि की व्यवस्था *बाबा मथुरा दास* तथा बाद में *बाबा मस्तराम* ने संभाली बाबा मस्तराम ने मंदिर में आने वाले साधू संतो के रूकने उनके स्नान, पूजा, भोजन आदि की अच्छी व्यवस्था की थी। इससे काशी, अयोध्या, चित्रकूट से साधू संत व उनके अखाडे यहा आकर रूकते थे। इस कारण मंदिर क्षेत्र मस्तराम अखाड़ा कहा जाने लगा। बाबा मस्तराम के बाद मंदिर व्यवस्था *श्री लक्ष्मी नारायण मिश्रा, श्री बद्री प्रसाद मिश्रा* ने संभाली इनके छोटे पुत्र *श्री गोविंद प्रसाद मिश्रा (अब स्वर्गीय)* ने मंदिर को नया रूप देते हुये क्वांर एवं चैत्र नवरात्रि रामनवमी, श्रावण, गणेशोत्सव धूम-धाम से मनाना शुरू किया और क्षेत्र में धर्म का अच्छा प्रचार किया *सन् 1965 से अब तक (लगभग 58 वर्षा से) प्रतिवर्ष लगातार मां दुर्गा की प्रतिमा की स्थापना एवं आकर्षक झांकी प्रस्तुत की जाती है। 


*राम जानकी मंदिर शेर चौक -

* लगभग 125 वर्ष पूर्व बना शेर चौक गली में प्रभु राम जानकी हनुमान जी का भव्य मंदिर है, जो लगभग 40 सीढ़िया चढ़ने पर है। यह टंटाई महराज का रामजानकी मंदिर कहलाता है। मंदिर में नियमित पूजा व अन्य कार्यक्रम होते है।


*सत्यनारायण मंदिर (बरही रोड कटनी)-

* यह मंदिर *सन 1860-70* के बीच में गुरुदेव *वंशधारी पांडे जी* द्वारा बनवाया गया था.? उस समय इस मंदिर में एक *तालाब में शंकर जी* की मूर्ति स्थापित की गयी थी..? और परिसर के अंदर एक *संस्कत पाठशाला,* एक *छात्रावास* व आनाज रखने के लिये एक बहुत बड़ी *गोदाम* भी बनवायी गयी थी, *सन 1911* में *गुरुदेव वंशधारी पांडे जी की मत्यु* के बाद उनकी पत्नी *धोखा बाई पांडे* द्वारा मंदिर परिसर की जमीन को छोड़कर बाकी जमीन को *फतेहपुर शेखावाटी* से कटनी आये दो बजाज बन्धुओ को बेच दी गयी थी..? *यह जानकारी गुरुदेव वंशधारी पांडे जी के वंशस द्वारा हमें दी गयी है।*


1911 में बजाज बन्धुओ द्वारा मंदिर का और निर्माण करके मुंगेर (पटना) स्थित राधाकृष्ण मंदिर की तर्ज पर कराया गया।1911 में मंदिर निर्माण शुरू हुआ एवं 7 वर्ष में 1918 में कार्य पूर्ण हुआ, और मंदिर में राधाकृष्ण जी की मूर्ति स्थापित की गयी।तभी से प्रतिवर्ष यहाँ जन्माष्टमी पर्व मनाया जाता है। मंदिर के पास अरबो रूपये की कई एकड़ जमीन व कई अचल संपत्तियां है। *सन 1918* में ही इस मंदिर का एक ट्रस्ट भी बनाया गया जो *सन 1990* के लगभग धीरे धीरे खत्म कर दिया गया।


*श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर -

* में विराजमान मूर्तियां श्री लक्ष्मीनारायण, श्री रामजानकी, लक्ष्मण, हनुमान जी आदि है। वर्ष 1912 में श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर ट्रस्ट कमेटी द्वारा मंदिर निर्माण कराया गया था। *स्व. श्री कुंज बिहारी लाल चौदहा, स्व. श्री हल्कू लाल चौदहा* के सहयोग एवं *स्व.महादेव प्रसाद चौदहा एवं चौदहा परिवार, मसुरहा परिवार* एवं अन्य प्रबुद्ध जनों का सहयोग मंदिर को प्राप्त हुआ। यह मंदिर नगर का प्रसिद्ध मंदिर है, जहाँ प्रतिदिन विधिवत पूजन होता है। विशेष अवसरों पर झांकी, भंडारा, एवं धर्मिक कार्यक्रम होते रहते है । मंदिर के पास कई एकड़ जमीन व कई अचल संपत्तियां है। *बधाई उत्सव समीति* द्वारा प्रतिवर्ष मटकी फोड प्रतियोगिता एवं भव्य जुलूस लगभग साठ (60) वर्ष से इसी मंदिर से निकाला जाता है।


*श्री गोविंद देव जी मंदिर -

* श्री गोविंद देव जी मंदिर का निर्माण *श्री सुखदेव प्रसाद गौंड* निवासी ग्राम *मांजुकोट तहसील कोटपुतली जिला जयपुर (राजस्थान)* द्वारा *सन् 1873* में कराया गया था। यहाँ नित्य पूजन, भोग प्रसाद उत्सव मनाए जाते है। जन्माष्टमी पर सुन्दर झांकी, रंगोली दीपावली के अवसर पर आयोजित अन्नकूट पर 56 भोग का प्रभु को समर्पण एवं प्रसाद वितरण हर वर्ष होता है। *स्व. सुखदेव प्रसाद जी* के उत्तराधिकारी मंदिर व्यवस्था परम्परानुसार करते आ रहे हैं।


*दक्षिण मुखी हनुमान मंदिर -

* यह मंदिर कटनी शहर के बीच बाजार में पूर्व से स्थपित हैं। मंदिर की जमीन मुडवारा के राजा द्वारा प्रदान की गई थी *सन् 1906-07* के राजस्व नक्शे में मंदिर का नाम है। दक्षिण मुखी हनुमान मंदिर श्रृद्धालु जनों का विशिष्ट श्रृद्धा केन्द्र है प्रति मंगलवार और शनिवार को श्रृद्धालु प्रसाद चढ़ाने, हनुमान चलीसा, सुन्दरकांड का पाठ करने भी आते है । मनोकामना पूरी होने पर लोग श्रृद्धा पूर्वक दान आदि भी करते है ।


*हनुमान मंदिर छपरवाह रोड -

* छपरवाह रोड पर रेल्वे पुलिया के निकट वर्तमान रंगनाथ नगर में चमत्कारी हनुमान मंदिर है। यहां गर्मी में भी भरपूर जल देने वाला छोटा सा कुँआ है। कहते है जलपूर्ति हेतु *श्री जगन्नाथ प्रसाद अग्रवाल* ने सन् 1860 के आस पास एक कुँआ खोदा जिसमें भगवान गणेश, शिव, दुर्गा जी आदि की मूर्तियां निकली। जिन्हें पीपल वृक्ष के नीचे बिराजित कर दिया गया। बाद में *सन् 1920* के लगभग उनके सुपुत्रों *श्री बद्री प्रसाद अग्रवाल, काशी प्रसाद अग्रवाल, गोपाल प्रसाद अग्रवाल आदि* ने इन मूर्तियों सहित श्री हनुमान जी की मूर्ति स्थापित कर एक मंदिर एवं कुँआ निर्मित करा दिया। बाद में मंदिर का स्वरूप दिन प्रति दिन बड़ा होता गया। बुजर्ग कहते हैं कि मंदिर की व्यवस्था हेतु इस अग्रवाल परिवार द्वारा 12 एकड़ भूमि, बंधवा सहित दान में दी गई थी जिसका अब राजस्व रिकार्ड में पता नहीं चलता है। मंदिर में *सन् 1960* से एक *सांप के जोड़े* का निवास है।


*स्वराजनाथ शिव मंदिर -

* कटनी जिला चिकित्सालय मार्ग पर जैन स्कूल के पास स्थित *स्वराजनाथ शिवमंदिर* लगभग *सन् 1924* में तत्कालीन पुलिस विभाग द्वारा बनवाया गया था। *सन् 1936* में पूर्व पुलिस प्रशासन ने इस मंदिर के दोनों ओर दुकानों का निर्माण कराया। दुकानों का किराया 65 वर्षो तक मुन्सी मालखाना पुलिस विभाग में जमा होता रहा। इसके बाद मंदिर की व्यवस्था हेतु तत्कालीन एस.पी. के मौखिक आदेश पर किराया मंदिर के पुजारी *पं. अमरनाथ शास्त्री* जी को मिलने लगा था। सन् 2001 से पूर्व में यह मंदिर पुलिस लाइन मंदिर कहलाता था।


*मसुरहा घाट शिव मंदिर –

* वर्ष 1862 में स्व. *श्री हर प्रसाद मसुरहा* ने कटनी नदी तट पर भव्य मंदिर का निर्माण कराया इसमें गहोई समाज के आदि देव सूर्य, शिव एवं हनुमान जी आदि की प्रतिमाएँ स्थापित कराई गई है। 6 अगस्त 1961 को कटनी नदी में भीषण बाढ़ आई थी, इसमें मंदिर को खतरा आं गया था, वर्ष 1995 में *श्री राजाराम मसुरहा* ने मंदिर सहित भवन दान कर दिया। वर्तमान में भवन (मंदिर) *ब्राम्हण सत्संग भवन* कहलाता है। मंदिर के पास मसुरहा घाट में मशुरहा जी के गुरू की समाधि है।


*दशावतारी विष्णु -

* 1960 तक मसुरहा घाट पर 60 इंच X 26 इंच की भगवान विष्णु के दशावतार की एक सम्पूर्ण प्रतिमा थी। जिसमें मध्य में 36 इंच X 20 इंच में भगवान विष्णु सीधे खड़े थे, और आभूषण वस्त्र शरीर का सौन्दर्य बुन्देलखण्ड प्रकार का था। प्रतिमा में विष्णु के दशावतार क्रमशः 1. मत्स्यावतार, 2. कच्छपावतार, 3. बाराहावतार, 4. नृसिंहावतार, 5. वामनावतार, 6. परशुराम, 7. राम, 8. कृष्ण, 9. बुद्ध अवतार अंकित थे। यह प्रतिमा अब गायब है।


*मधई मंदिर कटनी -

* भगवान श्री शंकर का यह विख्यात मंदिर लगभग 200 साल पुराना। *सन् 1906-07* में *श्री मघई लाल* आत्मज *श्री गोकुल प्रसाद तीतविरासी* ने बगीचे में शिव मंदिर की स्थापना कराई थी। मंदिर में भगवान राधा कृष्ण रामलक्ष्मण सीता हनुमान आदि की मूर्तियां भी हैं। *सन् 1952* में *श्री सुखदेव प्रसाद गोयनका* ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था।


*बड़ी खोर माई लखोरा -

* 1973 में स्थापित बड़ी खेर माई लखेरा की प्रतिमा जंगल में वर्षों पहले मिली थी। लोगों का विश्वास है कि राजा कर्ण के समय से पेड़ के नीचे प्रतिमा विराजमान थी। नवरात्रि में यहां नौ दिन तक पूजा पाठ भगतें एवं धार्मिक आयोजन होते है । अष्टमी पर तवा खेल विशेष उल्लेखनीय होता है । नवमी को जवारे विशेष श्रद्धा से जलूस में निकाले जाते है ।


*हनुमान मंदिर देवरी सानी -

* (पीर बाबा के सामने) - सन् 1965 के आसपास हनुमान मंदिर बना, उपस्थित एवं सहयोगी जनों में सर्व *श्री नरेश नाथ चतुर्वेदी, डॉ. एस.के.गर्ग, मेहर चन्द शर्मा, मित्तर सिंह ओबेराय, दयाराम तिवारी, कृष्ण मुरारी पुरवार, भगवत प्रसाद पाठक आदि* थे। मंदिर का निरंतर विकास होता जा रहा है। मंदिर के सामने मुसलिम सम्प्रदाय का आस्था केन्द्र पीरबाबा की मजार है, तो सामने यह हनुमान मंदिर है। इस प्रकार यह हिन्दू मुस्लिम एकता का अच्छा उदाहरण है।


*दत्तधाम ताम्रकार शिव मंदिर -

* सब्जी मण्डी के निकट दत्तधाम शिवमंदिर की स्थापना लगभग 100 वर्ष पहले *स्व.श्री लक्ष्मी प्रसाद ताम्रकार* ने कराई थी। बाद में स्वामी शुद्धानन्द ने इस शिवमंदिर का नाम दत्त धाम (आश्रम) दिया 1972 से लगातार यहाँ प्रतिदिन अभिषेक पूजन आदि होता है। 80 के दसक में *ताम्रकार परिवार* जनों नें मंदिर का *जीर्णोध्दार* कराया। शिवरात्रि में 24 घंटे का अभिषेक कार्यक्रम प्रतिवर्ष होता है। साल में चार बार भंडारे का कार्यक्रम भी होता है। 


*श्री शंकर जी का मंदिर सोनी बगीचा -

* गहोई समाज के स्वर्गीय *श्री बिहारी लाल, स्व. श्री रघुनाथ प्रसाद सोनी* ने सन् 1842 में श्री शंकर जी मंदिर एवं बगीचा का निर्माण कराया था जिसका जीर्णोध्दार परिवार जनों ने वर्ष 2000 में कराया । *सर्वश्री दमड़ी लाल गनेश प्रसाद, गोकुल प्रसाद, महेश प्रसाद सोनी (सभी स्वर्गीय)* ने मंदिर समाज को दान कर दिया था मंदिर का संचालन ट्रस्ट करता है।


*गुंडा घाट का मंदिर -

* सिमरार नदी किनारे लगभग सन् 1800 में निर्मित यह मंदिर *श्री छैल बिहारी गुप्ता* के परिवार जनों द्वारा बनवाया गया बताया जाता है। रेल्वे स्टेशन के नजदीक होने से बाहरी यात्री यहाँ स्नान कर किराना दुकान से सामान लेकर भोजन बनाते (प्रायः गक्कड भर्ता) मंदिर में पूजा कर प्रसाद पाते व अपने गंतव्य को चल देते । नदी घाट सुन्दर एवं पानी स्वच्छ होने से नगर वासी भी प्रायः छुट्टी के दिन यहां स्नान करने कपड़ा धोने व बच्चे तैरना सीखने आ जाते थे।


*श्री शंकर जी मंदिर पहरूआ -

* गहोई समाज की *श्री मति खिलौना बहू* ने अपने पति स्वर्गीय *श्री धुन्ध लाल जी जार* की स्मृति में श्री शंकर जी के मंदिर का निर्माण *सन् 1943* में कराया था । श्री मती खिलौना बहू के निधन के बाद मंदिर का संचालन श्री शंकर जी मंदिर ट्रस्ट पहरूआ द्वारा किया जा रहा है।


*नागबाबा नागेश्वर शिवमंदिर -

* लगभग 100 वर्ष पूर्व तालाब किनारे छोटी खिरहनी में ग्राम वासियों ने यह मंदिर बनवाया था। यह मंदिर क्षेत्र का श्रृद्धा का केन्द्र है। यहाँ विभिन्न पर्व पूर्ण श्रृद्धा भक्ति एवं उत्साह से मनाए जाते है।


*हवलदारिन का शिवमंदिर -

* पुराने वेंकट वार्ड में निषाद स्कूल के पीछे हवलदारिन के वाडे में लगभग 150 वर्ष पुराना शिवमंदिर है। कहते है कि यहाँ रहने वाले पुलिस विभाग में कार्यरत हवलदार की स्मृति में उनकी पत्नी ने मंदिर बनवाया था। मंदिर क्षेत्र की जनता का अपार श्रृद्धा का केन्द्र है।


*जगन्नाथ जी की रथ यात्रा -

* सन् 1850 के लगभग जुहला ग्राम के रहने वाले *दुबे (नायक)* परिवार ने कटनी नदी तट पर *श्री जगदीश स्वामी मंदिर* का निर्माण कराया था। जिसे अब कटनी के लोग *जगन्नाथ मंदिर* के नाम से जानने लगे है, तब कटनी में लघु बसाहट थी। *सन 1883* के लगभग श्री जगदीश स्वामी मंदिर से रथ यात्रा महोत्सव का शुभारंभ हुआ। उन दिनों बैलगाड़ी में भगवान जगन्नाथ की शोभायात्रा निकाली जाती थी, कभी किसी वर्ष बैलगाड़ी के स्थान पर लोग पालकी में भगवान जगन्नाथ को बिराजमान कर पालकी को अपने कंधों में उठाकर रथयात्रा का उत्सव धूम-धाम से मनाते थे। *सन् 1953* तक *सर्वश्री बल्लभदास अग्रवाल गणेश प्रसाद मसुरहा* ने श्री जगदीश स्वामी मंदिर के प्रबंध का काम संभालते हुए *जगदीश मित्र मंडल* नाम की संस्था गठित की और रथयात्रा महोत्सव लगातार कई साल तक मनाते रहें। भगवान जगन्नाथ रथयात्रा महोत्सव की परम्परा को आगे बढ़ाने में *सर्वश्री काशी प्रसाद अग्रवाल, मालगुजार, जगन्नाथ प्रसाद गेंडा, लक्ष्मण प्रसाद जार, बाला प्रसाद सोनी, ठाकुर मोहन सिंह, बाला प्रसाद पुरवार, रामचन्द्र स्वर्णकार, लोटन प्रसाद स्वर्णकार, सुन्दर लाल गुप्ता, महादेव प्रसाद स्वर्णकार, बद्री प्रसाद बहरे, परमानन्द गुप्ता आदि* का महत्वपूर्ण सहयोग रहा। मंदिर में *पुजारी पं. राजेश्वरी महाराज* द्वारा अनेक वर्षों तक भगवान की पूजा अर्चना का कार्य किया जाता रहा अब उनके परिवार द्वारा कार्य जारी है। *सन् 1990* से पंजीकृत संस्था *श्री जगदीश स्वामी मंदिर ट्रस्ट कमेटी* के द्वारा मंदिर की 11 दिन देख रेख और रथ यात्रा महोत्सव का आयोजन प्रतिवर्ष धूम-धाम से किया जा रहा है।


*भगवान जगन्नाथ मंदिर कैलवारा खुर्द -

* स्वामी संकर्षण प्रपन्नाचार्य महाराज की जन्मभूमि कैलवारा खुर्द है। उनके सानिध्य में भगवान जगन्नाथ स्वामी मंदिर का निर्माण कराया गया। एवं 22 जून 2012 को प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा हुई। यहा हर वर्ष जगन्नाथ स्वामी की अषाढ द्वितिया मे शोभा यात्रा निकाली जाती है।


*श्री रामजानकी मंदिर बावली टोला -

* आजाद चाक मिशन चौक स्थित बावली टोला रामजानकी मंदिर *सन् 1870* में उत्तर प्रदेश से आये *श्री स्वामी रामानन्द सन्यासी बाबा* ने बनवाया था। छोटी मढ़िया रूपी यह मंदिर श्रद्धा का केन्द्र था। इसे सन्यासी बाबा का मंदिर कहते थे। सन् 1900 में इस मंदिर और श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर के लिए मूर्तिया जयपुर से एक साथ बनकर आयीं थी। 1984 में मंदिर का जीर्णोधार *श्री सोमनाथ पांडे* व्यवस्थापक द्वारा कराया गया।


*गायत्री शक्तिपीठ -

* सन् 1970 के आसपास माई नदी के पास गायत्री परिजनों ने गायत्री मंदिर का निर्माण कार्य प्रारंभ कराया था। गायत्री जयंती 1972 को मंदिर बनकर तैयार हो गया एवं माता गायत्री की मूर्ति स्थापना की गई बाद में भव्य भवन बना। गायत्री मंदिर परिसर में युगल वृक्षों के निकट पंचमुखी गायत्री माता की चमत्कारी मूर्ति है कहा जाता है की प्रतिदिन इनके समक्ष सायंकाल दीपक जला ने से कठिन से कठिन मनोकामना पूरी होती है। गायत्री परिवार मंदिर में गायत्री जयंती, बसंत पंचमी, नवरात्रि आदि पर्व पर यज्ञ एवं अन्य संस्कार निशुल्क आयोजित करता है।


*भूमि प्रकट माता मंदिर बरगवां -

* 1973 में अक्षय तृतीया पर *सावित्री देवी* को स्वप्न देने के बाद अमरूद के पेड़ के नीचे से *माता शारदा* की मूर्ति प्रकट हुई, 1973 में ही मंदिर की स्थापना हुई । यह शहर का एक मात्र मंदिर हैं। जिसमें *महिला पुजारी* है। दोनो नवरात्र में जवारा की विशाल शोभा यात्रा निकाली जाती है जो दर्शनीय है।


*चार युगों का मंदिर -

* स्व. *श्री दादूराम पटेल* द्वारा ग्राम बड़ेरा में 9 मार्च 1984 को चार युगों के पाँच मंजिला मंदिर का निर्माण कराया गया था। मंदिर की पहली मंजिल में *सतयुग (सफेद मूर्ति)* दूसरी मंजिल में *त्रेतायुग* तीसरी मंजिल में *द्वापर* चौथी मंजिल में *कलयुग (काली प्रतिमा)* तथा पांचवीं मंजिल में *मां जगदम्बा* की प्रतिमा स्थापित हैं। मंदिर का लोकार्पण तत्कालीन केन्द्रीय *संचार मंत्री श्री अर्जुन सिंह* ने किया था।


*मां शारदा मंदिर -

* सन् 1971 में मघई मंदिर रोड़ पर मां शारदा मंदिर का निर्माण देवीभक्त *श्री गंगाराम कनौजिया* द्वारा कराया गया था। दोनों नवरात्रि में यहां भजन कीर्तन आरती जबारा जुलूस एवं भंडारा होता है।


*आजाद चौक दुर्गा मंदिर -

* अब यह गाटर घाट रोड़ में है लगभग 1960 से शारदेय नवरात्रि में प्रतिवर्ष मां दुर्गा की मूर्ति स्थापित कर पूजा अर्चना उपरांत विसर्जन होता था। वर्ष 1980 में मंदिर बनाकर मां दुर्गा की प्राण प्रतिष्ठा की गई। इसमें प्रतिदिन विशेष आरती तथा नवरात्रि पर्व पर महाआरती का आयोजन होता था। अतिक्रमण हटाने के दौरान मंदिर आजाद चौक से गाटरघाट रोड पर स्थानांनत्रित हो गया।


*पहरूआ की खेर माई -

* शंकरगढ़ पहरूआ (लालबहादर शास्त्री वार्ड) में खेर माता मंदिर है। एक एकड़ भूमि पर जवारा बिसर्जन, कजलिया मिलन मेला, रामलीला आदि कार्यक्रम होते है।


*सांई मंदिर -

* नगर में विभिन्न स्थानों में सांई मंदिर हैं,आदर्श कालोनी में, दुबे कालोनी में, छोटी खिरहनी, गौतम बंधवा टोला के अलावा पहरूआ रोड़ में, सांई प्रशांत भवन नई कटनी, पुराना बस स्टेण्ड में (जिला अस्पाताल से स्थानांतरित प्रतिमा अतिक्रमण के कारण), गौतम जी बंधवा राजीव गांधी वार्ड, ए.सी.सी. गेट के पास, हीरागंज, आदि में हैं।


*नृसिंह मंदिर -

* मुड़वारा स्टेशन के समीप पुराना नरसिंह भगवान का मंदिर है। जिसमें श्रृद्धालु जन पूजन हवन भंडारा आदि करते है।



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