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जाने कटनी जिले के बारे में (Know about - Katni)

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Saturday 25 January 2020

कटनी के आसपास के अच्छे पर्यटन स्थलों में से एक , "बिलहरी" की सैर "

कटनी के आसपास का पिकनिक स्पॉट...
ये है, कटनी से 15  किलोमीटर दूर - "बिलहरी"






कटनी के आसपास का पिकनिक स्पॉट...
ये है, कटनी से 15  किलोमीटर दूर - "बिलहरी"

कटनी के आसपास के अच्छे पर्यटन स्थलों में से एक ,
आज "बिलहरी" की सैर -

सर्दी आ चुकी है और हवा में ठंडक घुल गई है। आज दोपहर में मैं निकल पड़ा कटनी से 15 किलोमीटर दूर स्थित “बिलहरी”,, जिसका पुराना नाम पुष्पावती था। आज भी यहां उपस्थित मंदिरों, मठों, स्मारकों पर पुष्पावती नगर आसानी से देखने को मिल जाता है। बिलहरी, हिन्दु और जैन धर्म से जुड़ा हुआ है। बिलहरी एक ऐतिहासिक स्थल है, जो विन्ध्याचल पर्वत की पार्श्व श्रृंखला कैमूर श्रेणी के किनारे स्थित है।

बिलहरी में प्रवेश करते ही एक बड़ा तालाब है जिसके एक तरफ मंदिर हैं, वही एक तरफ पान के खेत। इस तालाब का निर्माण कल्चुरी राजा लक्ष्मणराज ने लगभग 945 ईस्वी में करवाया था। तालाब अपनी विशालता के साथ-साथ सिंघाडें और घटनाओं के लिए प्रसिद्ध है। पुरातन मान्यताओं के अनुसार इस तालाब की गहराई में अथाह सोना है, एक सोने की नथ पहनी हुई मछली है और तालाब के बीचों बीच एक मंदिर भी है जो किसी साल तालाब में पानी कम होने के बाद दिखाई देता है। बिलहरी बाहर से बिल्कुल सामान्य गांव की तरह नजर आता है लेकिन जैसे-जैसे गांव के अंदर प्रवेश आते है, वैसे-वैसे इसकी ऐतिहासिक विरासत के बारे में पता चलता है। तालाब के किनारे बनी रोड़ पर चलते हुए मैं तालाब के दूसरे तरफ जा पहुंच, जहां मंदिर, मठ, गढ़ी, घाट और यत्र-तत्र फैली मूर्तियों को आसानी से देखा जा सकता है। पुराने सही सलामत घाटों का नए टूटे-फूटे घाटों से मिलन साफ-साफ देखा जा सकता है।

तालाब के किनारे अमूल्य मूर्तियां पड़ी हुई है इनमें गणेश, विष्णु, देवी, शिवलिंग है। इन सभी को देखकर अपने गौरवशाली इतिहास पर मुझे गर्व तो होता है, और संरक्षित न होने पर दुख| पुराने घाट के नजदीक ही छोटी-सी गढ़ी बनी हुई है, तालाब के समीप ही बिलहरी उपथाना के बगल से ही एक मठ बना है। इस मठ का निर्माण कल्चुरीकालीन है। इस मठ के ऊपरी हिस्से का निर्माण 15-16 शताब्दी का है जो गौंड राजाओं ने करवाया था और इस मठ के चारों ओर दीवार बनवाने का कार्य भी किया। ज्ञात होता है कि एक समय था जब यहां एक मंदिर परिसर हुआ करता था। इस मठ पर एक लेख भी नजर आता है जो इस प्रकार है ‘श्री गणेशाय नम: गोप्प दासदेव’ , संभवतः यह मठाधीश का नाम हो सकता है।

मठ से थोड़ी ही दूरी पर एक मंदिर नजर आता है जिसे स्थानीय लोग अज्ञातदेव का मंदिर कहते है। असलियत यह शिव मंदिर है जिसमें अब कोई शिवलिंग नहीं है।

बिलहरी आज भले ही एक छोटा-सा गांव हो लेकिन एक समय था जब इस गांव की सीमा 24 मील तक फैली हुई थी। मान्यताओं के अनुसार इस जगह की स्थापना अंगराज कर्ण ने पुष्पावती नगर के नाम से की थी। पुष्पावती नगरी अपनी संपन्नता के कारण जाना जाता था। कामकंदला और माधवानल की प्रेम गाथाएं आज भी यहां के रह वासियों के मुख से सुनी जा सकती है। पुष्पावती नगरी में कल्चुरी राजाओं ने कई वर्षों तक शासन किया फिर इनके पतन के बाद चंदेल और फिर गौंड राजाओं ने शासन किया। यह नगर अपने विशाल ऐतिहासिक समृद्ध विरासत के लिए जाना जाता है। आज भी यहां खुदाई करने पर ऐतिहासिक महत्व की मूर्तियां प्राप्त होती है।

बिलहरी की गलियों में घूमते हुए और कई साै साल पुराने मंदिरों को देखते हुए पतली संकरी गली से गुजरते हुए मैं पहुंचा तपसी मठ। तपसी मठ को कामकंदला किला के नाम से भी जाना जाता है। इस मठ का निर्माण 14 वीं शताब्दी में किया गया था। इस मठ के अंदर फांसी घर, फोर्ट, मठ, बाबडी और शिव मंदिर है। यह मठ भारतीय पुरातत्व विभाग के अंतर्गत आता है। मुख्य प्रवेश द्वार के बिल्कुल बाएं एक बाबड़ी बनी हुई है जिसके बारे में यह कहा जाता है कि इसका पानी कभी खत्म नहीं होता है। इस बाबड़ी की गहराई लगभग 50 फीट है । यह बाबड़ी कल्चुरी शैली में बनाई गई है। मुख्य द्वार से अंदर प्रवेश करते ही बाईं ओर संरचना बनी हुई है तथा दाईं ओर नोहलेश्वर मंदिर । मंदिर की स्थापना काल ब्रिटिश काल की प्रतीत होती है जिसमें रेत, ईंट आदि का प्रयोग कर मंदिर को आधुनिक रुप प्रदान किया है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है जिसमें केवल अब योनि ही शेष बची है लिंग चोरी हो चुका है। मंदिर की अंदरुनी छत पर कलात्मक पेंटिंग की जिसमें तरह-तरह की फूल, पत्ती, मछली को दर्शाया गया है। इस मंदिर के अंदर के द्वार के दोनों ओर हनुमान जी की पेंटिंग दिखाई देती है परंतु अब रंग फीके पड़ चुके है। परिक्रमा पथ में गर्भगृह के दो ओर पत्थर से बनी हुई जाली दिखाई देती है। इस मंदिर में प्राचीन का और आधुनिकता से मेल आसानी से देखा जा सकता है। इस मंदिर के समीप एक परिसर दिखाई पड़ता है जिसमें लगभग 450 मूर्तियां रखी हुई है, जिसमें जैन और हिंदु धर्म से संबंधित देवी-देवताओं की मूर्तियां है। इस समृद्ध विरासत को देखकर लगता है कि बघेलखंड को सभी तक पहुंचने में देर हुई है। यहां उपस्थित विरासत भारत के लिए खजाने जैसा है।

ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण होने के बाद भी बिलहरी के संरक्षण में किसी व्यक्ति, अधिकारी अथवा जनप्रतिनिधि द्वारा द्वारा उसके ऐतिहासिक महत्व को ध्यान में रखकर इसे संरक्षण में कोई ठोस कदम नही उठाया गया, जिसके कारण बिलहरी आज भी उपेक्षित है |
Source - Katni Vikash Sangh

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